एक सभ्य समाज का बड़ा ही असभ्य चेहरा
पिछले दिनों मूल संविधान के खिलाफ जो माहौल बना है उससे डर सा लगने लगा है।लोग गांधी जी के कातिल गोडसे कि विचार धारा को स्थापित करने में लगे है और कोई एतराज़ नहीं हो रहा।गो आतंकी खुलेआम गुंडागर्दी कर रहे है। प्रधान मंत्री जी ने भी उनको रोकने कि अपील की है लेकिन कोई असर नहीं हुआ। बिसहेड़ा दादरी में केसा खेल चल रहा है सब जग जाहिर है।इस खेल में वहा की लोकल सरकार भागीदार है।डीगरहेड़ी में जो हुआ और जेसे ही पता चला कि आरोपी आरएसएस गो रक्षा दल से जुड़े है सरकार कि जाँच एजेंसियो का नज़रया ही बदल गया। इस देश में इंसाफ सबको चाहिए. लेकिन उसे हासिल करने की प्रक्रिया का हिस्सा कोई नहीं बनना चाहता। बल्लभगढ़ के जुनैद की हत्या के केस में ये बात एक बार फिर से साबित हो रही है।एक भरी पूरी ट्रेन में किसी को उसके मज़हब की वजह से टार्गेट किया जाता है, भीड़ चुप रहती है। बल्कि मर्डर में अहम भूमिका अदा करती है. एक प्लेटफार्म पर करीब दो सौ लोगों की मौजूदगी में कोई दम तोड़ता है। पुलिस को एक चश्मदीद गवाह नहीं मिलता। जुनेद की हत्या का देश में पहला मामला नहीं हैं बल्कि पहलू हत्या कांड, अखलाक हत्या कांड जैसी लगभग 20 घटनाऐं देश में हो चुकी हैं।भारतीय और पाकिस्तानी पाठकों के लिए भीड़ की किसी व्यक्ति को पीट-पीट कर मार देना शायद बड़ी बात नहीं होगी, लेकिन कश्मीर के लिए अयूब पंडित की हत्या बड़ी घटना है। बीते कुछ समय में भीड़ की हिंसा जैसी कुछ घटनाएं हुई हैं, कुछ लोगों की जान भी गई है। लेकिन सभी हत्या जानबूझ कर की गई जैसा कि अयूब पंडित के मामले में। और चलती ट्रेनों में महिलाओं के साथ ब्लात्कार हो रहें हैं। कुल असामाजिक तत्व ने जिनके माध्यम से देश को संप्रदायिक आग में झोंकने का काम किया है। हम यकीनन इंसाफपसंद मुल्क हैं। इसके अलावा एक और बात भी है, जुनेद की हत्या एक चलती ट्रेन में हुई। पूरी तरह क्राउडेड डिब्बे में ज़ाहिर सी बात है दर्जनों लोग मौजूद होंगे वहां लेकिन कोई भी ना तो लड़कों को बचाने सामने आया और ना ही कोई आरोपियों की निशानदेही कर रहा है। हम लोग असंवेदनशीलता में भी विश्वगुरु बनते जा रहे हैं। कैसे इतने सारे लोग किसी को अपनी आंखों के सामने मर जाने देते हैं? कैसे कोई तड़प नहीं उठता किसी को मरता देख कर? दया, करुणा का महिमामंडन करने वाले इस मुल्क में लोग किसी की मौत जैसी बड़ी और हाहाकारी घटना पर भी आंखें बंद किए दे रहे हैं। देखा जाए तो ये एक सभ्य समाज का बड़ा ही असभ्य चेहरा है। हमारे देश में पिछले कई सालो से गोरक्षा के नाम पर आतंक की घटनाऐ दिन प्रतिदिन बढती जा रही हैं। हर सप्ताह कोई ना कोई ऐसी घटना सामने आती रहती हैं। पिछले कुछ समय में जिस प्रकार की घटनाएं हमारे देश में हुई है वे हमारी पूर्वग्रह सोच का ही निष्कर्ष हैं। चाहे दादरी में हुआ अखलाक हत्याकांड हो, अलवर राजस्थान अथवा हाल ही में में हुई जुनेद बल्लभगढ कि घटना हों। लोग बिना जांच पड़ताल के ही नतीजे पर पहुंच जाते हैं और किसी व्यक्ति विशेष अथवा समुदाय विशेष को उस घटना का जिम्मेदार ठहरा देते हैं। और इतना ही नहीं वे कानून को उसका कार्य करने देने की बजाय स्वयं ही कानून हाथ में लेकर सजा भी दे देते हैं।दरअसल पूर्वग्रह (prejudice) – एक खतरनाक मानसिक रोग हैं। पूर्वग्रह का अर्थ ‘पूर्व निर्णय’ है, अर्थात् किसी मामले के तथ्यों की जाँच किये बिना ही राय बना लेना या मन में निर्णय ले लेना।पूर्वग्रह रोग से ग्रसित व्यक्ति ऐसा व्यवहार या तो जान बूझकर करता हैं या फिर तथ्यों को जाने बगैर या सत्य का ज्ञान नहीं होने के कारण करता हैं। पूर्वग्रह के कारण निश्चित तौर पर समाज और पारस्परिक संबंधों को अत्यधिक हानी होती हैं। पूर्वग्रह से ग्रसित व्यक्ति की सोचने समझने और तर्क वितर्क करने की क्षमता पर ताला लग जाता हैं। वह व्यक्ति सिर्फ वही बात स्वीकार करेगा जो उसके दिमाग में पहले से विद्यमान हैं। अब जानते हैं कि दादरी और अलवर हत्याकांड का पूर्वग्रह सोच से क्या संबंध हैं?
उत्तर प्रदेश के दादरी शहर में हुई घटना से हम सभी भली भांति परिचित हैं। किस प्रकार मात्र एक अफवाह के आधार पर उग्र भीड़ द्वारा अखलाक की निर्मम हत्या कर दी गईं थी। अफवाह फैलायी गईं थी कि अखलाक के परिवार ने घर में गाय का मांस रखा हुआ है क्यों एक अफवाह के आधार पर अखलाक की हत्या कर दी गई? ऐसी ही एक घटना हाल ही में 4 अप्रैल को राजस्थान के अलवर शहर मे हुई जिससे पूरा देश परिचित हैँ। किस प्रकार एक उग्र भीड़ ने 5 मुस्लिम व्यक्तियों पर हमला कर दिया जो कुछ दुधारू गायों को खरीदकर उनके शहर मेवात ले जा रहे थे और उनकी निर्ममता से पिटाई कर दी जिसमे एक व्यक्ति की मृत्यु हों गई।चाहे दादरी मे हुआ अखलाक हत्याकांड हों अथवा अलवर मे हुआ पहलू खान हत्याकांड हों दोनों ही घटनाओं में एक बात तो समान हैं और वह हैं पूर्वग्रह। कुछ लोगों को लगता हैं कि अगर मुसलमान गाय के साथ दिखता हैं तो इसका तात्पर्य हुआ कि वह जरूर गाय को काटने के लिए ले जा रहा हैं। परंतु सच्चाई तो यह कि मुसलमान भी खेती करते हैं गाय भैंस पालते हैं। और पहलू खान भी उनमेसे एक था परंतु पूर्वग्रह से ग्रसित लोगों ने यह जानने की कोशिश तक नहीं की और उसकी हत्या कर दी। एक तरफ गौरक्षा के नाम पर मुसलमानों की जान ली जा रही हैं. वहीँ दूसरी तरफ वहीँ गायें भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ रही हैं। भारत के सबसे बड़े और धनी गोशालाओं में से एक कानपुर स्थित भौंती स्थित गोशाला में पिछले पांच महीनों में एक चौथाई गायें मर चुकी हैं, जबकि आधी गायें बीमार हैं। 220 करोड़ की संपत्ति वाली इस गौशाला में भूख के कारण अब तक 540 गायों में से 152 गायें मर चुकी हैं। गायों का पोस्टमार्टम करने वाले डॉक्टरों ने बताया कि इनकी मौत चारे और पानी के अभाव में हुई है। ऐसे में सवाल उठ रहे कि करोड़ों के अनुदान मिलने के बाद भी आखिर भूख से गायों की मौत कैसे हो सकती हैं। हमें जरुरत हैं कि हम अपनी सोच को बदले और अपने पूर्वग्रह को बदले तभी ऐसी घटनाओं को होने से रोका जा सकता हैं अन्यथा यह पूर्वाग्रह देश को बर्बाद कर देगा।
बर्बादियों के बेहिसाब टीलों पर बिलखते हुए दादरी के बिसाहड़ा गांव के अखलाक और मेवात के पहलू की मां, जुनेद बल्लभगढ के, बेटी और भाई के चेहरे, उनकी आंखों में ख्वाबों के रेगिस्तान, उनके घरों में मातम के प्रेतों का बसेरा देखा होगा। कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है लेकिन अभिन्न अंग के साथ कोई ऐसा बर्ताव करता है जैेसा वहाँ हो रहा हें समझ से बाहर है।हमारी सेना वीर और बहादुर है उसके पराक्रम को हमेशा सैल्यूट लेकिन जिस तरह उनकी बहादुरी पर वोटों की राजनीती हो रही हें उसका मतलब क्या है।साथ साथ नकली राष्ट्रवाद और धर्मान्तरण ,घर वापसी ,असहविष्णुता , लव जिहाद का जो खेल खेला जा रहा है उसे देखकर नहीं लगता कि हम डॉ आंबेडकर के संविधान से देश को चला रहे है। देश में नफरत , ख़ौफ़ और दहशत का माहोल बनाया जा रहा है जो बोले उसी पर किसी ना किसी तरह से वॉर किया जाता है।अब ना गरीब ना गरीबी की चिंता, ना महगाई पर सवाल , ना रोज़गार की लड़ाई और न ही आदिवासिओ और दलित और अल्पसंख्यको के हक़ हकूक का ज़िक्र और ना काले धन की वापसी और ना 15 लाख का वादा क्योकि वो सब तो अब जुमला बन गये है।किसी को जल्दी बड़ा नेता बनना है तो मुसलमानो के खिलाफ आग उगल दो,आनन् फानन में नेता तैयार। राजनीती का मेन सूत्र हिन्दू मुस्लमान,पाकिस्तान हिन्दुस्तान , पटेल नॉन पटेल, जाट नॉन जाट, मराठा नॉन मराठा आदि रह गए है और आने वाले दिनों मै फला और नॉन फला खोजे और गड़े जायेंगे। ऐसा सपना तो हमारे आज़ादी के दीवानो और क्रान्तिकारियों ने नहीं देखे होंगे।आज अगर डॉ आंबेडकर ज़िंदा होते तो अपने ही लिखे संविधान का ये प्रारूप देखकर रो पड़ते।