तलाक कैसे होता है
अगर निकाह के बाद जिंदगी में ऐसे हालात पैदा हो जाते हैं कि साथ रहना मुश्किल हो तो आपसी सहमति से तलाक लिया जाता है. अगर शौहर बीवी को तलाक देता है तो यह तीन चरण में होता है. पहले तलाक के बाद बीवी इद्दत करती है. मतलब वो शौहर से सेक्स नहीं करती. दोनों के घर वाले सुलह कराने की कोशिश करते हैं. अगर इसके बाद भी बात नहीं बनी तो दूसरा तलाक दिया जाता है पर वह भी दोनो की सहमति से ही, दूसरे तलाक के बाद गवाह वकील या सोसाइटी के बुजुर्ग बीच बचाव करते हैं और जिसकी भी गलती हो मामले को सुलझाने की कोशिश कोशिश करते हैं. अगर समझौता हो जाता है तो फिर से दोनो का निकाह होगा. वो भी पहले की तरह ही. और अगर इस बार बात बिगड़ती है तो तीसरा तलाक दिया जाता है. इस तीन तलाक में करीब 3 महीने लग जाते हैं.
तलाक के बाद लड़की अपने मायके वापस आती है और इद्दत का तीन महीना 10 दिन बिना किसी पर आदमी के सामने आए पूरा करती है. ताकि अगर वो गर्भ से है तो जिस्मानी तौर पर सोसाइटी के सामने आ जाए. जिससे उस औरत के ‘चरित्र’ पर कोई उंगली न उठा सके. उसके बच्चे को ‘नाजायज़’ न कह सके. क्योंकि धर्म कोई भी हो, हमारे समाज में तो लड़की ही अपनी छाती से लेकर गर्भ तक परिवार की इज्जत की ठेकेदार होती है.
खैर. इद्दत का वक्त पूरा होने पर वो लड़की आज़ाद है. अब उसकी मर्ज़ी है वो चाहे किसी से भी शादी करे. आमतौर पर ये सब इतनी नाराजगी के बाद होता है कि दोबारा से उस आदमी से शादी करने की गुंजाइश ही नहीं बचती.
लेकिन अगर मर्द अब फिर से अपनी बीवी को पाना चाहे तो तब तक नहीं पा सकता जबतक उस औरत ने फॉर्मल तरीके से दूसरे मर्द से शादी (पढ़ें: सेक्स) न किया हो. और उसके बाद उससे तलाक ले लिया हो. बेसिकली हमारे समाज में औरत मर्द की प्रॉपर्टी होती है. इसलिए जरूरी है कि मर्द को उसे खोने का एहसास दिलाया जाए. इसलिए एक मर्द को सजा देने के लिए औरत का नए मर्द के साथ सेक्स करना जरूरी हो जाता है. यही होता है ‘हलाला’.
लेकिन इस्लाम में असल हलाला का मतलब ये होता है कि एक तलाकशुदा औरत अपनी आज़ाद मर्ज़ी से किसी दूसरे मर्द से शादी करे. और इत्तिफाक़ से उनका भी निभा ना हो सके. और वो दूसरा शोहर भी उसे तलाक दे-दे, या मर जाए, तो ही वो औरत पहले मर्द से निकाह कर सकती है. असल ‘हलाला’ है.
याद रहे यह महज इत्तिफ़ाक से हो तो जायज़ है. जानबूझ कर या प्लान बना कर किसी और मर्द से शादी करना और फिर उससे सिर्फ इस लिए तलाक लेना ताकि पहले शोहर से निकाह जायज़ हो सके, यह साजिश नाजायज़ है.
लेकिन इसका ये पहलू भी है कि अगर मौलवी हलाला मान ले, तो समझे हलाला हो गया.
पर औरत के अधिकार?
अगर सिर्फ बीवी तलाक चाहे तो उसे शौहर से तलाक मांगना होगा. क्योंकि वो खुद तलाक नहीं दे सकती. अगर शौहर तलाक मांगने के बावजूद भी तलाक नहीं देता तो बीवी शहर काज़ी (जज) के पास जाए और उससे शौहर से तलाक दिलवाने के लिए कहे. इस्लाम ने काज़ी को यह हक़ दे रखा है कि वो उनका रिश्ता ख़त्म करने का ऐलान कर दे, जिससे उनका तलाक हो जाएगा. इसे ही ‘खुला’ कहा जाता है.