मन करता है कि दौड़कर उनके पास पहुंच जाऊं
आज भी जब कभी मैं बाजार से विदा लेता हूं तो मेरा मन कहीं न कहीं से लरज जाता है। मुझे एक बीज बेचने वाले की कही बात याद आ जाती है। बीज बेचने वाले ने मुझे बताया था की जिन लोगों को खेती के लिए मैंने बीज बेचा, जिनकी फसलों के इलाज के लिए उनके खेतों की धूल फांकी, जाने कैसे उन्हें पता चल जाता है कि मैं आया हुआ हूं।
गर्मी में आया हूं तो तुरंत किसी के घर से मट्ठा या दही चली आ रही है, सर्दी में आया हूं तो चाय-पकौड़ी। कभी-कभार कहीं से इनरी-गुड़-गन्ने का रस भी। लोग याद रखते हों या न रखते हों, किसान जरूर याद रखते हैं। वो तब भी याद रखते हैं जब बीज बेचने वाला उन्हें बुरा बीज दे दे और तब और भी ज्यादा याद रखते हैं जब उनके हाथ अच्छी जमावन वाला बीज थमाया जाए।
[if gte vml 1]><v:shapetype id="_x0000_t75" coordsize="21600,21600" o:spt="75" o:preferrelative="t" path="m@4@5l@4@11@9@11@9@5xe" filled="f" stroked="f"> <v:stroke joinstyle="miter"></v:stroke> <v:formulas> <v:f eqn="if lineDrawn pixelLineWidth 0"></v:f> <v:f eqn="sum @0 1 0"></v:f> <v:f eqn="sum 0 0 @1"></v:f> <v:f eqn="prod @2 1 2"></v:f> <v:f eqn="prod @3 21600 pixelWidth"></v:f> <v:f eqn="prod @3 21600 pixelHeight"></v:f> <v:f eqn="sum @0 0 1"></v:f> <v:f eqn="prod @6 1 2"></v:f> <v:f eqn="prod @7 21600 pixelWidth"></v:f> <v:f eqn="sum @8 21600 0"></v:f> <v:f eqn="prod @7 21600 pixelHeight"></v:f> <v:f eqn="sum @10 21600 0"></v:f> </v:formulas> <v:path o:extrusionok="f" gradientshapeok="t" o:connecttype="rect"></v:path> <o:lock v:ext="edit" aspectratio="t"></o:lock> </v:shapetype><v:shape id="Picture_x0020_1" o:spid="_x0000_i1026" type="#_x0000_t75" alt="farmer" href="http://blogs.navbharattimes.indiatimes.com/wp-content/uploads/2017/01/farmer.jpg" target=""_blank"" style='width:405pt;height:270pt;visibility:visible; mso-wrap-style:square' o:button="t"> <v:imagedata src="file:///C:\Users\SAKHAN~1\AppData\Local\Temp\msohtmlclip1\01\clip_image001.jpg" o:title="farmer"></v:imagedata> </v:shape><![endif][if !vml][endif]एक बार किसी किसान की फसल अच्छी हो जाए तो उसके और बीज बेचने वाले के बीच विश्वास का जो रिश्ता बनता है, वो पूरी उम्र जितना लंबा होता है। बीज और किसान का रिश्ता होता ही ऐसा है। जब भी किसी किसान को किसी वक्त खेत की मेड़ पर खुरपी लेकर कुछ-कुछ करते देखता हूं तो लगता है कि वो अपने बच्चे को गोद में लेकर दुलार रहा है। उसके चेहरों की झुर्रियों के बनने बिगड़ने के बीच में जो प्रेम पनपता है, किस-किस ने उसे देखा है?
मेरे रोएं खड़े हो जाते हैं जब मैं कहीं ये खबर पढ़ता हूं कि किसानों ने टमाटर की पूरी फसल सड़क पर बिखेर दी, प्याज फेंक दिए और आलू फ्री में बांट दिए। खेत भले ही कितना बड़ा हो, एक-एक पौधे पर किसान की नजर रहती है। एक-एक पौधे पर दुलार छिड़का होता है।
मन करता है कि दौड़कर उन किसानों के पास पहुंच जाऊं और किसी तरह से उन्हें समझाऊं कि मत फेंको, ये वही हैं जिन्हें तुमने बोया था। अपने ही बोए हुए को सड़क पर फेंक आने से बड़ी पीड़ा क्या है? पर मैं सब जगहों पर नहीं पहुंच सकता। सबको नहीं मना कर सकता। और उस वक्त और भी हेल्पलेस होता हूं जब कुछ लोग कहते हैं कि ये किसानों का पब्लिसिटी स्टंट है? वे यह भी कहते हैं कि किसान बहुत ही लालची हो गए हैं।
[if gte vml 1]><v:shape id="Picture_x0020_2" o:spid="_x0000_i1025" type="#_x0000_t75" alt="tomato" style='width:261pt; height:195.75pt;visibility:visible;mso-wrap-style:square'> <v:imagedata src="file:///C:\Users\SAKHAN~1\AppData\Local\Temp\msohtmlclip1\01\clip_image002.jpg" o:title="tomato"></v:imagedata> </v:shape><![endif][if !vml][endif]अपने बच्चों को सड़ने के लिए सड़क पर फेंक देना पब्लिसिटी स्टंट है? किसान अगर लालची हो गए हैं तो वह लोग कौन हैं जो धान, गेंहू, गन्ना, कपास और मूंगफली का पैसा मारे बैठे हैं? किसानी केबिन में बैठकर लैपटॉप चलाके लाला जी के लिए दूसरों का पैसा मारना नहीं है।
किसानी कड़ी धूप, घने कोहरे, तड़कते पाले, बरसते और न बरसते पानी के बीच जीवन को गति देने की आदम कला है। इसे हम सब बड़े प्रेम और समझ के साथ यहां तक लेकर आए हैं। इसका क्या मूल्य लगाएंगे?