मुस्लिम रेजीमेंट क्यों नहीं है जब सेना में पंजाब, मराठा, राजपूत से लेकर गोरखा रेजीमेंट तक मौजूद है
देश की सेना में पंजाब से लेकर मराठा तक और राजपूत से लेकर गोरखा रेजीमेंट तक मौजूद हैं, लेकिन सोशल मीडिया पर इन दिनों एक सवाल पूछा जा रहा है कि जब सेना में राजपूत रेजीमेंट है तो मुस्लिम रेजीमेंट क्यों नहीं है? सेना में मुस्लिम रेजीमेंट क्यों नहीं है इसकी वजह भी बताई जा रही है.
सोशल मीडिया पर ढाई मिनट के एक वीडियो के जरिए दावा किया जा रहा है, ‘’आजादी के बाद से लेकर आज तक कोई भी ऐसी रेजीमेंट ही नहीं बनी, जिसमें मुस्लिम समुदाय की पहचान या नेतृत्व दिखाई देता हो ऐसा क्यों हैं? क्या भारतीय मुस्लिम देश के प्रति अपनी जान देने का जज्बा नहीं रखते या वो भरोसे के लायक ही नहीं हैं?’’
‘’मुस्लिम रेजिमेंट आज नहीं है ये अलग बात है, मगर साल 1965 तक होता था. 1965 में जब भारत-पाकिस्तान की पहली जंग हुई थी तब इस रेजिमेंट ने पाकिस्तान के खिलाफ जंग लड़ने से साफ इंकार कर दिया था, लगभग 20 हजार मुस्लिम सेना ने पाकिस्तान के सामने अपरने हथियार डाल दिए थे, भारत को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा था, क्योंकि मुस्लिम राइफल और मुस्लिम रेजिमेंट पर यकीन करके इनको भेजा गया था. इस वजह से इनकी पूरी की पूरी रेजिमेंट पर बैन लगा दिया गया और मुस्लिम रेजिमेंट को ही खत्म कर दिया गया.’’
भारतीय सेना की आधिकारिक वेबसाइट पर हमने ढूंढने की कोशिश की कि क्या कभी सेना में मुस्लिम रेजीमेंट थी? वेबसाईट पर सेना की मद्रास से लेकर सिख रेजीमेंट तक बिहार से लेकर असम रेजीमेंट तक का नाम मिला, लेकिन कहीं ऐसी कोई जानकारी नहीं मिली जो ये बताती हो कि सेना में मुस्लिम रेजीमेंट थी या नहीं?
1965 में भारत और पाकिस्तान के बीच जो युद्ध हुआ था उसके सबसे बड़े हीरो अब्दुल हमीद थे. पाकिस्तान के टैंक ब्रिगेड को पस्त करने वाले बहादुर सैनिक अब्दुल हमीद को उनके शौर्य के लिए मरणोपरांत देश के सबसे बड़े मेडल परमवीर चक्र से नवाजा गया था. अब्दुल हमीद ने अपनी जीप पर लगी रिकोएल गन से पाकिस्तान के एक के बाद एक चार टैंकों को ध्वस्त कर दिया था. अब्दुल हमीद के हमले से पाकिस्तानी सेना ऐसी घबराई कि अपने टैंक तक भारत की सीमा में छोड़कर भाग खड़ी हुई थी.
रिटायर्ड कर्नल तेज टिक्कू से एक न्यूज़ ने पूछा, ‘’क्या भारतीय सेना में कभी मुस्लिम रेजीमेंट हुआ करती थी?’’ इसके जवाब में कर्नल टिक्कू ने बताया, ‘’भारतीय सेना जिस तरह से बनी है, ये ब्रिटिश टाइम में बनी है. इसको ब्रिटिश इंडियन आर्मी कहते थे. आजादी के बाद ब्रिटिश इंडियन आर्मी के दो हिस्से हो गए और एक तिहाई पाकिस्तान चला गया, दो तिहाई हिस्सा भारत में रह गया. ब्रिटिश टाइम में एक नहीं बल्कि कई सारी मुस्लिम रेजीमेंट थी. हमारे पास ‘पीएम’ नाम से रेजीमेंट थी. आजादी के वक्त एक समझौते के मुताबिक, वो पाकिस्तान चली गई. इसी तरह बलूच रेजीमेंट थी जिसमें कोई हिंदू नहीं था. सिंध रेजीमेंट अब भी पाकिस्तान में है. धर्म के हिसाब से, जाति के हिसाब से रेजीमेंट बना रखी थी लेकिन आजादी के बाद इसमें कोई बदलाव नहीं हुआ.’’ कर्नल तेज टिक्कू 35 साल तक फौज में अपनी सेवा दे चुके हैं.
उन्होंने आगे बताया, ‘’वीडियो में जो दिखाया गया है वो बिल्कुल बेबुनियाद है और किसी मकसद से डाला गया है. इसमें कोई सच्चाई नहीं है.’’ वहीं, रिटायर्ड मेजर जनरल सतबीर सिंह ने कहा कि जो ऐसा कह रहा है वो पाप है.
रिटायर्ड मेजर जनरल सतबीर सिंह ने बताया कि जब जवान देश के लिए सेना में एक साथ होते हैं तो उनके बीच कोई धर्म कोई जाति नहीं होती सिर्फ एक चीज होती है और वो है देश की रक्षा.
दरअसल अग्रेंजों ने लड़ाकू जातियों के आधार पर भारत में सेना की रेजीमेंट्स बनाई थीं. राजपूत रेजीमेंट, सिख रेजीमेंट, गोरखा, जाट रेजीमेंट तब ही बनीं थी. सिख रेजीमेंट ही एक मात्र ऐसी यूनिट है जो धर्म से जुड़ी हुई लगती है. इसके अलावा ब्रिटिश काल में और आजादी के बाद कोई हिंदू रेजीमेंट या फिर मुस्लिम रेजीमेंट या फिर क्रिश्चिन रेजीमेंट नाम से कोई यूनिट भारतीय सेना में बनी है. सिख रेजीमेंट भी इसलिए बनी क्योंकि ये सिख राजाओं की देन थी, इसलिए उसे ब्रिटिश काल में भारतीय सेना में शामिल किया गया था.
दरअसल 1965 के भारत पाकिस्तान युद्ध में परमवीर चक्र से सम्मानित अब्दुल हमीद ग्रेनेडियर रेजीमेंट की हिंदुस्तानी मुसलमान कंपनी से ताल्लुक रखते थे. ये हिंदुस्तानी मुस्लमान कंपनी आज भी भारतीय सेना की ग्रेनेडियर रेजीमेंट का हिस्सा है, जिसमें सिर्फ मुस्लिम सैनिकों की भर्ती की जाती है, लेकिन सेना में धर्म के आधार पर कोई रेजीमेंट नहीं है. इसलिए सेना में मुस्लिम रेजीमेंट ना होने के पीछे गद्दारी का दावा करने वाला वायरल वीडियो झूठा है.